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संत रैदास कौन थे ? रविदास जी का जीवन, काव्य एवं ज्ञान

संत रैदास कौन थे ? रविदास जी का जीवन, काव्य एवं ज्ञान 
Who is saint Raidas/Ravidas ?

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Sant Ravidas kaun the in Hindi

परहित सेवा से जगे, सबमें एक विश्वास ।
सत्य कर्म करते रहो, कहते थे रैदास ।।

रैदास जी का जन्म :-

संत रविदास, जिन्हें हम संत रैदास के नाम से भी जानते हैं । इनका जन्म काशी यानी बनारस में माघ महीने की पूर्णिमा तिथि को रविवार के दिन संवत 1435 को हुआ ।

वैश्विक पटल पर जब कभी भी समाजवाद और निर्गुणरूप से परमात्मा की उपासना एवं समाज में आध्यात्मिकता के बीज बोने की बात की जाती है, तो संत कवियों में इनका नाम भी बड़े प्रेम एवं आदर के साथ लिया जाता है ।

रैदास जी का व्यक्तिगत जीवन :- 

इनके व्यक्तिगत जीवन पर प्रकाश डाला जाए तो हम देखते हैं, कि रैदास जी का जूते बनाने एवं उसकी मरम्मत करने का कार्य हुआ करता था । उस कार्य को भी ये बहुत ही मन एवं तन्मयता के साथ किया करते थे । उनका मानना था, कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता है । सभी में समान रूप से ईश्वर का वास होता है । अतः हमें हर कार्य को बहुत ही प्रेम से करना चाहिए ।

रैदास जी को ज्ञान :- 

संत कबीर की अनुकंपा से रैदास जी संत रामानंद के शिष्य बन गए और उन्हीं से आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित किए ।

रैदास जी का स्वभाव :- 

संत रैदास मधुर स्वभाव वाले, परम दयालु, परोपकारी एवं सबमें ईश्वर को देखने वाले एवं महसूस करने वाले तथा ऊँच नीच, पाखंड, द्वेष जैसी तमाम बुराइयों के प्रबल विरोधी संत थे ।

रैदास जी का काव्य :- 

समाज में माधुर्य भाव, मेल - जोल, सहानुभूति, सहयोग, सभी धर्मों, समुदायों का सम्मान इनके जीवन के साथ साथ इनकी रचनाओं में भी समान रूप से देखने को मिलता है ।

इनका मानना था, कि वेद, पुराण, कुरान आदि सभी ग्रंथों में एक ही परमेश्वर की वंदना एवं स्तुति की गई है । इसी भावना से ओतप्रोत ये लिखते हैं, कि .....

कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा ।
वेद, कतेब, कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा ।।

अपने सहज स्वभाव, निष्ठा, आध्यात्मिक एवं सामाजिक रचनाओं के बल पर इन्होंने परम सुख, शांति, एवं सिद्धि को प्राप्त किया । इनकी वाणी के प्रभाव से धीरे धीरे सभी लोग अपने आप इनके अनुयायी होते गए ।

रैदास जी का देहावसान :- 

वर्तमान उत्तर प्रदेश के बनारस में संवत 1586 को इस महान आत्मा ने हम सभी को प्रेम, समाजवाद एवं आध्यात्म का ज्ञान देकर सदा सदा के लिए इस नश्वर जगत को छोड़ दिया ।

रैदास जी की एक रचना :- 

ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै ।
गरीब निवाजु गुसाईआ मेरा माथै छत्रु धरै ॥
जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै ।
नीचउ ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै ॥
नामदेव कबीरू तिलोचनु सधना सैनु तरै ।
कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै ॥

हे प्रभु ! तुम्हारे बिना कौन ऐसा कृपालु है जो भक्त के लिए इतना बडा कार्य कर सकता है । तुम गरीब तथा दिन – दुखियों पर दया करने वाले हो । तुम ही ऐसे कृपालु स्वामी हो जो मुझ जैसे अछूत और नीच के माथे पर राजाओं जैसा छत्र रख दिया । तुमने मुझे राजाओं जैसा सम्मान प्रदान कर दिया । मैं अभागा हूँ । मुझ पर तुम्हारी कृपा असीम है । तुम मुझ पर द्रवित हो गए । हे स्वामी तुमने मुझ जैसे नीच प्राणी को इतना उच्च सम्मान प्रदान किया । तुम्हारी दया से नामदेव , कबीर जैसे जुलाहे , त्रिलोचन जैसे सामान्य , सधना जैसे कसाई और सैन जैसे नाई संसार से तर गए । उन्हें ज्ञान प्राप्त हो गया । रैदास कह्ते हैं, कि – हे संतों , सुनो ! हरि जी सब कुछ करने में समर्थ हैं । वे कुछ भी सकते हैं ।

© आशीष उपाध्याय
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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