ये माघ बहुत तड़पाता है
(Best Emotional Poem in Hindi)
आंखों का छलकना गागर सा,
मन का छलना, या प्रेम अटल ?
दुख के सागर में खो जाना,
है किसका ? ये कृत्य चपल ||
बार - बार ऊपर नीचे,
लहरों सा मन डोले क्यों ?
पतझड़ के बाद आए बसंत,
भोर में कोयल बोले क्यों ?
जब हो घाम, चारो धाम,
सूरज सबको तड़पाए क्यों ?
भूखा चंदा देखे तारे,
गीतों से भूख मिटाए क्यों ?
बादल चिल्लाए, मोर नाचे,
बारिश ने लकड़ी धोए क्यों ?
चूल्हे तक पहुंचा पानी,
दुनियां हंसे, हम रोए क्यों ?
सब सो गए घर में अपने,
हमसे सोया नहीं जाता है,
कंबल से झाकूं, पेट दुखे,
ये माघ बहुत तड़पाता है ||
बरस भर यही खेल चला,
पछुआ रेलमरेल चला |
जो सांस गया, आया नहीं !
"एकाकी" दुनियां छोड़ चला ||
© आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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