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वो जान मुझे बुलाती थी Premika Ke Liye Kavita Hindi me

वो जान मुझे बुलाती थी
Premika Ke Liye Kavita Hindi me

वो जान मुझे बुलाती थी Premika Ke Liye Kavita Hindi me
Premika Ke Liye Kavita Hindi me

जब कभी वो मिलने आती, 
सारी थकान ले जाती थी ।
नाम नही लेती थी लेकिन,
देख बहुत शर्माती थी ।।

रख के हाथों पे हाथ अपना,
मेहंदी के रंग दिखाती थी ।
कितना गाढ़ा है देखो जी !
बस यही बात दोहराती थी ||

कहते कहते चुप हो जाती,
हंसते - हंसते बतियाती थी ।
लाल ओढनी के कोने में,
नाम मेरा छुपाती थी ।।

यदि कभी मैं पुछ लेता,
मेरे लिए क्या आई हो ?
देख के आँखो में मेरे वो,
मन ही मन मुस्काती थी ||

कथा बहुत बड़ी है ये,
कविताओं में ना लिख पाऊंगा ।
बस इतना ही कहना है,
वो जान मुझे बुलाती थी ।।

© आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश 
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