ग़ज़ल (ज़माना बहुत बे-रहम हो गया है )
Ghazal (Zamana Bahut Be raham ho gaya Hai)
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ज़माना बहुत बे-रहम हो गया है ।
सभी को यहाँ अब वहम हो गया है ।।
जिसे मैं सदा प्यार से पूजता था ।
वही आदमी बे-शरम हो गया है ।।
गरीबी मुझे मार डाले कहीं जो,
न कहना खुदा का सितम हो गया है ।
दलाली करे जो उसे देख लो जी ।
अमीरों में उसका चरम हो गया है ।।
जिन्हें दौलतों की खनक है लुभाती ।
उन्हीं के घरों में धरम हो गया है ।
सभी से कहूँ एक ही बात मैं ये ।
जिसे प्यार है वो सनम हो गया है ।।
© आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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