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महान संतकवि कबीरदास जी के 10 प्रसिद्ध दोहे (10 Famous Doha of Sant Poet Kabirdas)

महान संतकवि कबीरदास जी के 10 प्रसिद्ध दोहे
10 Famous Doha of Sant Poet Kabirdas

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10 Famous Doha of Sant Poet Kabirdas


कबीरदास जी के 10 प्रसिद्ध दोहे


धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय। 
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय॥ 
 
कबीर ते नर अंध है, गुरु को कहते और । 
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥ 
 
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर । 
आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर॥ 

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान ।
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान ।।

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में प्रलय होयगी,बहुरि करेगा कब ॥

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर ।
पंछी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर ।।

राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय ।
जो सुख साधू संग में, सो बैकुंठ न होय ।।

तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार ।
सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार ।।

प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाय ।।
राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाय ।।

जल में बसे कमोदनी, चंदा बसे आकाश । 
जो है जा को भावना, सो ताही के पास ।।

© आशीष उपाध्याय ' एकाकी '
कवि । लेखक । अध्यापक

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