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माँ दुर्गा पर दोहे (Maa Durga Par Dohe)

माँ दुर्गा पर दोहे 
(Maa Durga Par Dohe)

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(Maa Durga Par Dohe)

जय महिषासुरमर्दिनी, जय कालों की काल ।
तेरा ही संसार ये, तेरा मायाजाल ।।

मुक्त करो इससे हमें, इसमें कष्ट अपार ।
झूठी है ये जिंदगी, झूठा ये संसार ।।

रक्तबीज संहारिणी, देखो ये संसार ।
पसर रही हैवानियत, लुप्त हुआ है प्यार ।।

जंगल काटे जा रहे, जीव जंतु भरपूर ।
दुनियाँ जलती जा रही, जैसे जले कपूर ।।

दानव अब भी हैं मगर, बदल गया है रूप ।
अंधकार चारो तरफ, नहीं कहीं है धूप ।।

हे जग की जननी तुम्हें, करते हैं वो याद ।
जिन्हें आसरा आपसे, करो उन्हें आबाद ।।

खड्ग हाथ में लो उठा, कर दो वो सब नाश ।
सत्य राह में जो यहाँ, बने हुए हैं पाश ।।

हे अम्बे जगदंबिके, सबकी पालनहार ।
शीश झुकाकर है नमन, तुमको बारम्बार ।।

नहीं किसी से आस है, नहीं और कुछ प्यास ।
ध्यान तुम्हारा ही रहे, जब तक है ये सांस ।।

मन तबसे बेचैन, जब से मिला शरीर ।
हे जननी इस मोह का, तोड़ो जब जंजीर ।।

मन की बेचैनी तभी, होगी मैया दूर ।
सहज तत्व से आपको, जानूं जब भरपूर ।।

© आशीष उपाध्याय ' एकाकी '
कवि । लेखक । अध्यापक


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