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आँखें सब देखती हैं (Best Motivational Social Poem in Hindi)

 आँखें सब देखती हैं !
Best Motivational Socia Poem in Hindi 

आँखें सब देखती हैं  (Best Motivational Social Poem in Hindi)
Best Motivational Poem in Hindi

About this Poem

वास्तव में हमारी आंखें सब कुछ देख सकती हैं । लेकिन शर्त ये है, कि हमारी आंखों के साथ मन का संयोग होना चाहिए और मन भी पूर्णतः स्वच्छ होना चाहिए । तभी हम सब कुछ साफ साफ देख सकते हैं और सत्य एवम झूठ में भेद स्थापित कर सकते हैं ।

इस कविता में आंखों को केंद्र मानकर आध्यात्मिक और सामाजिक पहलुओं को प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है । 


पहली चार पंक्तियां :-


पहली चार पंक्तियों में उन उन दीन हीन लोगों की आंखों की बात की गई है, जो चुपचाप सब कुछ सह लेते हैं, और जो कुछ मिलता है, उसी में संतोष करते हैं, लेकिन अपनी खुद्दारी पर कायम रहते हुए अपनी आखों से एक कतरा भी आंसू बहने नहीं देते ।


दूसरी चार पंक्तियां :- 


दूसरी चार पंक्तियों में पुनः आंखों को सहनशीलता का सूचक बता कर ये दिखाया गया है, कि चाहे कितनी भी दिक्कत आ जाए, हिम्मती और वीर पुरुष कभी रोते नहीं, सब कुछ बड़े आराम से सह लेते हैं । वीर पुरुष सब कुछ देखते हुए विपत्ति को अपने आप में समाहित कर लेते हैं ।


तीसरी चार पंक्तियां :-


तीसरी चार पंक्तियों में पारिवारिक परिदृश्य को प्रकट करके ये दिखाया गया है, कि माता, पिता, भाई, बहन सबकी अपनी अपनी आँखें होती हैं अर्थात सबकी अपनी अपनी अलग सोच होती है, कि पारिवारिक बंधन में बंधकर सभी एक साथ सभी सुखों दुखों को आराम से सह लेते हैं । कविता में वसंत को सुख और सावन में बारिश को आंखों से बहते हुए आंसुओं की संज्ञा दी गई है ।


चौथी चार पंक्तियां :- 


चौथी चार पंक्तियां पाठकों को अध्यात्म की ओर ले जाती हैं, और ये बताती हैं, कि आंख जैसी अद्भुत ज्ञान दर्शन कराने वाली इंद्रिय का संयम से सही दिशा में प्रयोग किया जाए या उसको सही दिशा दी जाए तो वह स्वर्ग का मार्ग प्रशस्त करती है, अन्यथा नर्क भी यही आंख दिखाती है ।


पांचवी और अंतिम चार पंक्तियां :- 


इन चार पंक्तियों में आध्यात्म और सामाजिक दोनो पहलुओं को एक साथ लेकर बात की गई है ।


पहले सामाजिक दृश्य :-

सामाजिकता के अनुसार सभी पंक्तियां एक भूखे व्यक्ति के दृश्य को बताती हैं, कि जो भूखा है, वह पकवान का इंतजार नहीं करता उसे तो सुखी रोटी या डाल ही मिल जाए तो वह अपना पेट भर लेता है । वह ये नही देखता, कि मुझे खिलाने वाला या देने वाला कैसी सूरत का है । वह तो केवल उसके दिल में छिपे मर्म को देखता है ।


अब आध्यात्मिक दृश्य :-

आध्यात्मिक रूप में ये समझना उचित है, कि आंखें सही गलत का भेद कर लेती हैं और फिर ये केवल सत्य का ही अनुसरण करती हैं ।

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उन आँखो का क्या ?
जो छलकती नहीं कभी ।
बस, रहती हैं चुपचाप,
कुछ कहती नहीं कभी ।।

दिल पर फेंके पत्थर,
दिल से चूम लेती हैं ।
ये आँखे ही हैं, बंधु !
दिशा दस घूम लेती हैं ।।

आंखें, मां की, बाप की,
बहन - भाई की भी होती हैं ।
कभी हंसती हैं बसंत सी,
कभी सावन भर रोती हैं ।।

आँखे स्वर्ग देखती हैं,
आँखे नर्क देखती हैं ।
 आँखे हो जाएं "एकाकी"
तो सर्वस्व देखती हैं ।।

 आँखे देखती हैं रोटी,
आँखे दाल देखती हैं । 
आँखे देखती नहीं चेहरा,
हृदय का हाल देखती हैं ।।

© आशीष उपाध्याय 'एकाकी
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश 

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